
भारत में जब देश खुद को आज़ाद कह रहा था, तभी एक फिल्म आई जिसने बता दिया कि प्यार कभी ग़ुलाम नहीं होता — वो या तो जीतता है, या फिर इतिहास बन जाता है।
हम बात कर रहे हैं K. Asif की कालजयी कृति ‘मुग़ल-ए-आज़म’ की।
जब ‘सलीम’ और ‘अनारकली’ ने प्यार को क़ैद से आज़ाद किया
दिलीप कुमार और मधुबाला की ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री देखने के बाद लोग बिजली के झटकों की जगह ‘प्यारी फुहारें’ महसूस करने लगे थे।
अनारकली की आँखों में बगावत, सलीम के लहजे में मोहब्बत — और दोनों के बीच में अकबर, यानी प्रेम का विरोधी No.1!
बादशाह सलामत Vs आशिक़ नंबर 1
पृथ्वीराज कपूर यानी अकबर, वो शख्स जिसने कहा- “सल्तनत किसी तवायफ को बहू नहीं बना सकती!“
सलीम ने जवाब में दिल थामकर कहा- “तो फिर सल्तनत छोड़ दूँगा!“
आजकल के लड़के तो इतनी बहादुरी Tinder पर भी नहीं दिखाते…
ब्लैक एंड व्हाइट इश्क़ का रंगीन इम्तिहान
1960 में जब ये फिल्म आई, तो रंगीन नहीं थी — लेकिन हर सीन में इमोशन्स के सारे शेड्स मौजूद थे। बाद में जब 2004 में इसे रंगीन किया गया, तो लोगों ने कहा — “अब इश्क़ का रंग भी दिखाई दे रहा है।”
हालांकि कुछ पुराने दर्शकों ने बोला, “ब्लैक एंड व्हाइट में ही असली क्लास था बेटा।”
संगीत जो आज भी दिल की दीवारों में गूंजता है
“प्यार किया तो डरना क्या” सिर्फ एक गाना नहीं था — ये बॉलीवुड का “I have nothing to lose” मोमेंट था।
लता मंगेशकर की आवाज़ और शेष गानों की शायरी ने मोहब्बत को इतना ऊँचा दर्जा दे दिया कि आज भी लोग breakup के बाद यही प्लेलिस्ट चलाते हैं।

प्रोडक्शन की महाकाव्य कहानी
K. Asif की ये फिल्म लगभग एक दशक तक बनती रही। लोगों को लगा था कि यह फिल्म रिलीज़ नहीं होगी, बल्कि मुग़ल इतिहास में शामिल हो जाएगी।
फिर जब रिलीज़ हुई, तो उसने बॉक्स ऑफिस को सलाम ठोकने पर मजबूर कर दिया।
आज की दुनिया में क्यों ज़रूरी है मुग़ल-ए-आज़म?
जब आज की फिल्मों में 15 मिनट के अंदर प्यार और ब्रेकअप दोनों हो जाते हैं,
जब ‘content’ से ज़्यादा ‘controversy’ बिकती है,
तब ‘मुग़ल-ए-आज़म’ हमें याद दिलाता है कि “सच्चा प्यार ताजमहल नहीं, ट्रैजिक एंडिंग भी हो सकता है — लेकिन वो अमर होता है।”
अगर अकबर आज होते, तो शायद अनारकली को “लाल किले से Unfriend” कर देते।
अनारकली की जगह कोई आज की हिरोइन होती तो कहती — “Sorry सलीम, मेरे डैड strict हैं और मेरी लाइफ में अभी career important है!”
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